सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब: बिहार में 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने के आरोपों पर उठे सवाल
Supreme Court seeks response from Election Commission: Questions raised on allegations of deletion of names of 65 lakh voters in Bihar
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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाने के गंभीर आरोपों पर नोटिस जारी किया।
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आयोग से शनिवार तक विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश।
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यह याचिका दावा करती है कि बिहार में बड़े पैमाने पर नाम हटाने की प्रक्रिया गैर-कानूनी ढंग से हुई।
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मामला लोकतंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता से जुड़ा होने के कारण संवेदनशील बन चुका है।
क्या है मामला?
हाल ही में दायर की गई एक याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट (Draft Voter List) से करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कार्रवाई बिना किसी वैध सूचना या प्रक्रिया के की गई, जिससे लाखों नागरिकों का मतदान अधिकार खतरे में पड़ सकता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 326 (मतदान का अधिकार) और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता के विरुद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए भारतीय चुनाव आयोग (ECI) को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने आयोग से शनिवार तक जवाब दाखिल करने को कहा है कि—
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इतने बड़े पैमाने पर नाम क्यों और कैसे हटाए गए?
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क्या प्रभावित मतदाताओं को इसकी जानकारी दी गई थी?
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नाम हटाने की प्रक्रिया पारदर्शी और कानूनी थी या नहीं?
चुनाव आयोग की भूमिका पर उठे सवाल
चुनाव आयोग पर इस मामले में सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या मतदाता सूची से नाम हटाने में सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया। यदि यह आरोप सिद्ध होता है, तो यह चुनावी निष्पक्षता और मतदाता अधिकारों के हनन का बड़ा मामला बन सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और जन भावना
इस मुद्दे ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों ने इसे “जनतंत्र की हत्या” बताते हुए चुनाव आयोग की भूमिका की निष्पक्ष जांच की मांग की है। कई संगठनों ने दावा किया है कि हटाए गए नामों में बड़ी संख्या में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के लोग शामिल हैं।
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सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई अब शनिवार को होगी।
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चुनाव आयोग को दस्तावेज़ और सफाई के साथ जवाब पेश करना होगा।
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यदि गड़बड़ी पाई जाती है तो नाम बहाल करने और जिम्मेदारी तय करने की कार्यवाही भी संभव।
बिहार में मतदाता सूची से 65 लाख नामों का हटना केवल एक राज्य का मुद्दा नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की नींव – मतदान अधिकार – पर गहरी चोट का संकेत है। सुप्रीम कोर्ट की इस पर सख्ती से निगरानी और चुनाव आयोग की जवाबदेही तय करना आने वाले चुनावों की विश्वसनीयता और पारदर्शिता के लिए अत्यंत आवश्यक है।