Birsa Munda 125th Death Anniversary: जानिए बिरसा मुंडा के जीवनी और बिरसाइत धर्म के बारे में

News Desk (शशांक पान्डेय): बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड के उलिहातू गाँव में एक गरीब मुंडा जनजाति परिवार में हुआ। उन्होंने आदिवासी संस्कृति, मिट्टी, लोकगीतों और सामुदायिक जीवन में ही अपना बचपन बिताया। शुरुआती शिक्षा चाईबासा के मिशनरी स्कूल से मिली, पर जल्दी ही उन्होंने ईसाई धर्म छोड़ अपनी परंपराओं में वापसी की।
बिरसा ने ‘बिरसाइत धर्म’ की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने शराब, जादू-टोना और विदेशी धर्मों से दूर रहने की सलाह दी। इससे आदिवासी समाज में आत्मसम्मान जागा और लोग उन्हें ‘धरती आबा’ यानी भगवान मानने लगे।
उन्होंने अंग्रेजों की जमींदारी और वन कानूनों के खिलाफ ‘उलगुलान’ (महाविद्रोह) नामक आंदोलन छेड़ा। मुंडा, उरांव और खड़िया जनजातियों को संगठित कर उन्होंने गुरिल्ला युद्ध शुरू किया। यह आंदोलन ब्रिटिश प्रशासन के लिए चुनौती बन गया।
3 मार्च 1900 को उन्हें गिरफ्तार कर रांची जेल में बंद किया गया। 9 जून 1900 को मात्र 25 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने इसका कारण हैजा बताया, लेकिन आदिवासियों का मानना है कि उन्हें जहर दिया गया था।
उनकी शहादत के बाद भी आंदोलन की गूंज बनी रही, और 1908 में ‘छोटानागपुर टिनेंसी एक्ट’ लाया गया, जिससे आदिवासी भूमि की रक्षा हुई।
आज बिरसा मुंडा का नाम आदिवासी समाज में सम्मान और संघर्ष का प्रतीक है। रांची एयरपोर्ट, विश्वविद्यालय, हॉकी स्टेडियम, और कई संस्थान उनके नाम पर हैं। 15 नवम्बर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
उनका संदेश — “अबुआ राज सेतेर जाना, महारानी राज तुंडु जाना” — आज भी आदिवासी आत्मसम्मान, अधिकार और संस्कृति की रक्षा का प्रतीक बना हुआ है।