Deoria News : सन 1896 में व्यापारिक दृष्टिकोण से अंग्रेजों ने चलाई थी टैक्सी की तरह बरहजिया ट्रेन
Deoria News : वर्तमान में देश जहां बुलेट ट्रेन की चर्चाएं तेज हुई है, वहीं देवरिया में एक ऐसी भी अनोखी बरहजिया ट्रेन है जो टैक्सी की तरह चलती है। देवरिया जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर सरयू नदी के किनारे स्थित बरहज बाजार ब्रिटिश शासन काल में प्रमुख व्यापारिक केंद्र हुआ करता था।
यहां पर बड़ी संख्या में खांड़सारी, चावल, गन्ना और दाल मिलें थीं। शीरा चट्टा का कारोबार भी यहां से होता था। यहां बने लोहे के सामान देश के विभिन्न हिस्सों में जाते थे। यहां की बनी तिजोरी आज भी काफी प्रसिद्ध है। पहले यहां से जलमार्ग के जरिए व्यापार होता था। बाद में इसके व्यापारिक महत्व को देखते हुए अंग्रेजों ने 1896 में बरहज से भटनी तक रेलवे लाइन की स्थापना की और बरहज को देश के प्रमुख शहरों से जोड़ा गया।
ट्रेन रोककर गार्ड ही बंद करते हैं ढाले का फाटक
भटनी-बरहज का यह रेल रूट पूर्वोत्तर रेलवे का शायद सबसे छोटा रेल रूट है। इस रेल रूट पर पड़ने वाले इकलौता चकरा ढाला रेलवे क्रॉसिंग पर कोई गेटमैन तैनात नहीं है। भटनी-बरहज का यह रेल रूट पूर्वोत्तर रेलवे का शायद सबसे छोटा रेल रूट है। इस रेल रूट पर सलेमपुर, सिसई गुलाब राय, सतरांव, देवरहा बाबा हाल्ट, पीवकोल सहित 7 स्टेशन हैं।

हालांकि कोरोना काल से पहले यह किराया 10 रुपया था लेकिन कोरोना के बाद किराया 30 रुपया हो गया था । इस वर्ष मार्च से पुनः सभी स्टेशनों का किराया 10 रुपया हो गया हैं। इस रेल रूट पर पड़ने वाले कई ढाले जिसमें चकरा ढाला, सतरांव ढाला रेलवे क्रॉसिंग पर कोई गेटमैन तैनात नहीं है। ऐसे में ढाला के पहले ड्राइवर और गार्ड ट्रेन रोककर फाटक बंद करते हैं जब ट्रेन ढाला पार कर जाती है तो फटक खोलकर ट्रेन में चढ़ता है और ट्रेन पुनः रवाना होती है।
उपेक्षा के शिकार है कई रेलवे स्टेशन
रेलवे स्टेशन उपेक्षा का शिकार हो गया है। उदासीनता का ही नतीजा है कि आजादी के बाद जहां देश के अन्य रेलवे स्टेशन अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त हुए वहीं यह स्टेशन दिनों दिन पराभव की तरफ अग्रसर होता गया। आलम यह है कि सिर्फ कहने का रेलवे स्टेशन रह गया है। यात्री सुविधाओं का अभाव है। न तो बैठने का इंतजाम है और न ही पेयजल, शौचालय। सुरक्षा का भी बुरा हाल है। यात्री मुश्किलों के बीच यात्रा करने को विवश हैं।