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गोरखपुर: बदहाली के कगार पर संस्कृत विद्यालय बांसपार, 1973 से अब तक की उपेक्षा

Gorakhpur: Sanskrit school Banspar on the verge of ruin, neglected since 1973

सहजनवा (गोरखपुर): कभी संस्कृत विद्यार्थियों की आवाज़ों से गूंजने वाला बांसपार का संस्कृत विद्यालय आज अपनी बदहाली की दास्तां बयां कर रहा है। 1973 में स्थापित यह विद्यालय आज जर्जर हालात से जूझ रहा है और सरकारी उपेक्षा का शिकार बना हुआ है।

विद्यालय की वर्तमान स्थिति

  • पाठ्यक्रम – उत्तर मध्यमा द्वितीय (इंटर स्तर तक)।

  • सुविधाएं – मात्र 3 छोटे कमरे, जिनमें न डेस्क-बेंच हैं और न ही बिजली की व्यवस्था।

  • आधारभूत दिक्कतें – पीने के पानी और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव।

  • स्टाफ – प्रधानाचार्या प्रियंका तिवारी के अलावा केवल 3 संविदा अध्यापक।

  • छात्र संख्या – 106 छात्र, जो केवल परीक्षा देने आते हैं।

  • बजट – मरम्मत के लिए हर साल केवल ₹2000 की धनराशि।


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कभी लंबी कतारें, आज सुनसान माहौल

क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि 90 के दशक में इस विद्यालय में नामांकन के लिए लंबी-लंबी कतारें लगती थीं। संस्कृत शिक्षा का केंद्र माने जाने वाले इस संस्थान की लोकप्रियता अब लगभग खत्म हो चुकी है।

उम्मीद की किरण: अलंकार योजना

विद्यालय प्रबंधक रामा शंकर पांडेय ने बताया कि इसे सरकार की अलंकार योजना के तहत शामिल किया गया है। यदि यह योजना प्रभावी ढंग से लागू होती है तो विद्यालय की बदहाली सुधर सकती है और यहां फिर से शिक्षा की गूंज सुनाई दे सकती है।

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Pragati Gupta

प्रगति गुप्ता दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर कर चुकी हैं। इसके अलावा इन्हें साहित्य में रुचि है और कविताएँ लिखने का भी शौक है। वर्तमान में प्रगति जनस्वराज हिन्दी के संपादक के तौर पर काम कर रहीं हैं।

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