कुशीनगर: धर्म, इतिहास और संस्कृति की धरती
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक और धार्मिक जनपद है, जो बुद्ध और महावीर की तपोभूमि रहा है। जानिए इसका समृद्ध इतिहास, धार्मिक महत्व और पर्यटन स्थलों की पूरी जानकारी।
कुशीनगर: उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्वी कोने पर स्थित कुशीनगर जनपद अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए देश और विदेश में एक विशिष्ट पहचान रखता है। इसकी सीमाएँ दक्षिण-पश्चिम में गोरखपुर, पश्चिम में महराजगंज, दक्षिण में देवरिया, उत्तर में नेपाल और उत्तर-पूर्व में बिहार राज्य से मिलती हैं।
प्राकृतिक दृष्टि से यह क्षेत्र बड़ी गंडक, छोटी गंडक, बाँसी नदी और मझना नाला जैसी नदियों से समृद्ध है, जो इसकी भौगोलिक सीमाओं को परिभाषित करती हैं।
इतिहास की नींव: कुशीनगर का गठन
13 मई 1994 को देवरिया जिले से अलग होकर ‘पड़रौना’ के नाम से इस जनपद की स्थापना हुई। इसके तीन वर्ष बाद, 19 जून 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा इसका नाम ‘कुशीनगर’ रखा गया, जो भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली के रूप में प्रसिद्ध है।
जनपद मुख्यालय पड़रौना है, जिसका पौराणिक संबंध भगवान राम के अयोध्या लौटते समय यहाँ आगमन से जुड़ा है। मान्यता है कि पहले इसे ‘पदरामा’ कहा जाता था, जो समय के साथ ‘पड़रौना’ बन गया।
धार्मिक धरोहर: बुद्ध और महावीर की तपोभूमि
कुशीनगर वह पवित्र स्थल है जहां भगवान बुद्ध ने अंतिम उपदेश देकर महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। बौद्ध ग्रंथों में इसे ‘कुसिनारा’ और ‘कुशावती’ के नाम से उल्लेखित किया गया है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी भी रही है।
1861-62 में जनरल कनिंघम ने इस स्थल की पहचान की। बाद में ए.सी.एल. कार्लायल और हीरानंद शास्त्री द्वारा कराए गए उत्खननों में यहाँ से महापरिनिर्वाण स्तूप, बुद्ध की शयन मुद्रा प्रतिमा, गुप्तकालीन ताम्रपत्र, प्राचीन मुद्राएं, और अन्य पुरावशेष प्राप्त हुए, जो इसकी ऐतिहासिक महत्ता को प्रमाणित करते हैं।
पावा: जैन धर्म में पावन स्थल
जनपद में स्थित ‘पावा’ नगर, प्राचीन मल्ल गणराज्य का प्रमुख केंद्र था। यहीं भगवान महावीर स्वामी ने अपना अंतिम चातुर्मास व्यतीत किया और कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए।
इसलिए इस क्षेत्र को ‘पावन’, ‘पापहीना’, ‘अपापा’ जैसे नामों से भी जाना गया है। अनेक जैन ग्रंथों में इस स्थल का विशेष उल्लेख मिलता है, जो इसे जैन धर्म में अत्यंत पूजनीय बनाता है।
राजनीतिक इतिहास: गणराज्यों से साम्राज्यों तक
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में यह क्षेत्र मल्ल गणराज्य का भाग था, जिसने स्वतंत्रता की भावना के साथ शासन किया। बाद में यह क्षेत्र मौर्य सम्राट अशोक के अधीन आया, जिन्होंने यहाँ बौद्ध स्तूपों और स्तंभों का निर्माण कराया।
इसके पश्चात यह क्षेत्र शुंग, कुषाण, और गुप्त शासकों के अधीन रहा। गुप्त काल में यहाँ से प्राप्त मुद्राएं, शिलालेख, और मूर्तियां इसके धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव को दर्शाती हैं।
गुप्त साम्राज्य के बाद यहाँ मौखरि वंश, हर्षवर्धन, कलचुरी, और गहड़वाल शासकों का शासन रहा। 1194 ई. में जयचंद की पराजय के बाद यह क्षेत्र मुस्लिम शासन के अंतर्गत आ गया।
आधुनिक युग: वैश्विक पर्यटन का केंद्र
आज कुशीनगर बौद्ध अनुयायियों का अंतरराष्ट्रीय तीर्थ स्थल बन चुका है। यहाँ स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर, रामभर स्तूप, जापानी मंदिर, थाई विहार, तिब्बती विहार, और वर्मा बुद्ध मंदिर जैसे स्थल यहाँ की धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं।
हर वर्ष हजारों-लाखों पर्यटक और श्रद्धालु यहाँ धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक रुचि के चलते आते हैं।
कुशीनगर केवल एक प्रशासनिक इकाई नहीं, बल्कि भारतीय धर्म, इतिहास और संस्कृति का गौरवशाली प्रतीक है। यह भूमि बुद्ध और महावीर की तपोस्थली रही है और गणराज्य प्रणाली से साम्राज्यवादी शासन तक की यात्रा का साक्षी रही है। आज भी यह जनपद धार्मिक सहिष्णुता, सांस्कृतिक विविधता, और मानवता के मूल्यों का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
Note- Article is based on Research Papers