News Desk: बलूचिस्तान की आज़ादी की राह में कई रोड़े
News Desk: Many obstacles in the way of Balochistan's independence
News Desk: पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान में स्वतंत्रता की मांग दशकों से जारी है। हाल के दिनों में यह आंदोलन और भी तेज़ हुआ है, लेकिन इसकी राह में कई बाधाएं हैं जो इसे जटिल और संघर्षपूर्ण बनाती हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बलूचिस्तान का इतिहास स्वतंत्रता की चाहत से जुड़ा रहा है। 1947 में ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता के बाद, बलूचिस्तान की कलात रियासत ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया था। हालांकि, मार्च 1948 में पाकिस्तान ने इसे अपने में मिला लिया, जिसे बलूच राष्ट्रवादी आज भी अवैध कब्जा मानते हैं।
हालिया घटनाक्रम
9 मई 2025 को बलूच नेता मीर यार बलोच ने बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा की और भारत से समर्थन की अपील की। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था और दशकों से बलूच लोगों पर अत्याचार हो रहे हैं।
बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने हाल ही में ‘ऑपरेशन हेरोफ 2.0’ के तहत 58 स्थानों पर 78 हमले किए, जिनमें सैन्य और सुरक्षा ठिकानों को निशाना बनाया गया।
आंदोलन की बाधाएं
1. सुरक्षा बलों की सख्ती
पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों पर बलूच कार्यकर्ताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई के आरोप हैं। हजारों लोगों के लापता होने और हत्या की घटनाएं सामने आई हैं।
2. अंतरराष्ट्रीय समर्थन की कमी
बलूच आंदोलन को वैश्विक स्तर पर अपेक्षित समर्थन नहीं मिल पाया है। अधिकांश देश इसे पाकिस्तान का आंतरिक मामला मानते हैं, जिससे आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान नहीं मिलती।
3. आंतरिक विभाजन
बलूच आंदोलन में विभिन्न गुटों के बीच मतभेद हैं। कुछ गुट राजनीतिक समाधान की बात करते हैं, जबकि अन्य सशस्त्र संघर्ष को प्राथमिकता देते हैं। यह विभाजन आंदोलन की एकता को कमजोर करता है।
4. चीन-पाक आर्थिक गलियारा (CPEC)
CPEC परियोजना के तहत बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर निवेश हो रहा है, लेकिन स्थानीय लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा। इससे असंतोष बढ़ा है और आंदोलन को नई ऊर्जा मिली है।
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भारत की भूमिका
बलूच नेताओं ने भारत से समर्थन की अपील की है। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से बलूचिस्तान के लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की थी। हाल ही में मीर यार बलोच ने भारत से दिल्ली में बलूच दूतावास खोलने की मांग की है।
बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग एक जटिल मुद्दा है, जिसमें ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय पहलू जुड़े हैं। जब तक इन सभी पहलुओं पर गंभीर और न्यायसंगत चर्चा नहीं होती, तब तक बलूचिस्तान का आंदोलन एक कठिन और लंबी लड़ाई बना रहेगा।
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